Sunday, October 17, 2010

सपने जो टूट गए

तू मेरा सपना ही अच्छा है, हकीकत न बन जाना;
मुश्किल हो जायेगा, मेरा इस चाहत को संभाल पाना
सपनों की तश्तरी ज़िन्दगी के मेज़ पर सजी है;
पलकों की चादर तेरे ही इंतज़ार में बिछी है
चाहत से बढ़ के यूँ आगे, थामा हाथ मैंने जो तेरा;
हस्ती मिट गयी, नाम भी खो गया मेरा
बन के एक उस अँधेरी रात के साए में;
तारे बन गए सपने जो मैंने सजाये थे
रुक के, पलट के, इंतज़ार था तेरे आने का;
लम्हे बढ़ गए, इंतज़ार था इन सालों के बीत जाने का
डूब के तेरी चाहत में ऐसी गुस्ताखी कर बैठे; 
अमावस की रात में पूर्णिमा की चांदनी का इंतज़ार कर बैठे!!!!!

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